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राम अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Ram Ashtottara Shatanama Stotram || Ram Ashtottara Shatanama Stotra

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राम अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Sri Ram Ashtottara Shatanama Stotram

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राम अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Sri Ram Ashtottara Shatanama Stotram

॥ अथ श्रीमदानन्दरामायणान्तर्गत श्री रामाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् ॥

विष्णुदास उवाच-

ॐ अस्य श्रीरामचन्द्रनामाष्टोत्तरशतमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः ।

अनुष्टुप् छन्दः । जानकीवल्लभः श्रीरामचन्द्रो देवता ॥

ॐ बीजम् । नमः शक्तिः । श्रीरामचन्द्रः कीलकम् ।

श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

अङ्गुलीन्यासः ।

ॐ नमो भगवते राजाधिराजाय परमात्मने अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ नमो भगवते विद्याधिराजाय हयग्रीवाय तर्जनीभ्यां नमः ।

ॐ नमो भगवते जानकीवल्लभाय मध्यमाभ्यां नमः ।

ॐ नमो भगवते रघुनन्दनायामिततेजसे अनामिकाभ्यां नमः ।

ॐ नमो भगवते क्षीराब्धिमध्यस्थाय नारायणाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ नमो भगवते सत्प्रकाशाय रामाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

षडङ्गन्यासः ।

ॐ नमो भगवते राजाधिराजाय परमात्मने हृदयाय नमः ।

ॐ नमो भगवते विद्याधिराजाय हयग्रीवाय शिरसे स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते जानकीवल्लभाय शिखायै वषट् ।

ॐ नमो भगवते रघुनन्दनायामिततेजसे कवचाय हुम् ।

ॐ नमो भगवते क्षीराब्धिमध्यस्थाय नारायणाय नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ नमो भगवते सत्प्रकाशाय रामाय अस्त्राय फट् । इति दिग्बन्धः ॥

अथ ध्यानम् ।

मन्दाराकृतिपुण्यधामविलसद्वक्षस्थलं कोमलं,

शान्तं कान्तमहेन्द्रनीलरुचिराभासं सहस्राननम् ।

वन्देऽहं रघुनन्दनं सुरपतिं कोदण्डदीक्षागुरुं,

रामं सर्वजगत्सुसेवितपदं सीतामनोवल्लभम् ॥ १६॥

अथ स्तोत्रम् ।

सहस्रशीर्ष्णे वै तुभ्यं सहस्राक्षाय ते नमः ।

नमः सहस्रहस्ताय सहस्रचरणाय च ॥ १७॥

नमो जीमूतवर्णाय नमस्ते विश्वतोमुख ।

अच्युताय नमस्तुभ्यं नमस्ते शेषशायिने ॥ १८॥

नमो हिरण्यगर्भाय पञ्चभूतात्मने नमः ।

नमो मूलप्रकृतये देवानां हितकारिणे ॥ १९॥

नमस्ते सर्वलोकेश सर्वदुःखनिषूदन ।

शङ्खचक्रगदापद्मजटामुकुटधारिणे ॥ २०॥

नमो गर्भाय तत्त्वाय ज्योतिषां ज्योतिषे नमः ।

ॐ नमो वासुदेवाय नमो दशरथात्मज ॥ २१॥

नमो नमस्ते राजेन्द्र सर्वसम्पत्प्रदाय च ।

नमः कारुण्यरूपाय कैकेयीप्रियकारिणे ॥ २२॥

नमो दन्ताय शान्ताय विश्वामित्रप्रियाय ते ।

यज्ञेशाय नमस्तुभ्यं नमस्ते क्रतुपालक ॥ २३॥

नमो नमः केशवाय नमो नाथाय शर्ङ्गिणे ।

नमस्ते रामचन्द्राय नमो नारायणाय च ॥ २४॥

नमस्ते रामचन्द्राय माधवाय नमो नमः ।

गोविन्द्राय नमस्तुभ्यं नमस्ते परमात्मने ॥ २५॥

नमस्ते विष्णुरूपाय रघुनाथाय ते नमः ।

नमस्तेऽनाथनाथाय नमस्ते मधुसूदन ॥ २६॥

त्रिविक्रम नमस्तेऽस्तु सीतायाः पतये नमः ।

वामनाय नमस्तुभ्यं नमस्ते राघवाय च ॥ २७॥

नमो नमः श्रीधराय जानकीवल्लभाय च ।

नमस्तेऽस्तु हृषीकेश कन्दर्पाय नमो नमः ॥ २८॥

नमस्ते पद्मनाभाय कौसल्याहर्षकारिणे ।

नमो राजीवनेत्राय नमस्ते लक्ष्मणाग्रज ॥ २९॥

नमो नमस्ते काकुत्स्थ नमो दामोदराय च ।

विभीषणपरित्रातर्नमः सङ्कर्षणाय च ॥ ३०॥

वासुदेव नमस्तेऽस्तु नमस्ते शङ्करप्रिय ।

प्रद्युम्नाय नमस्तुभ्यमनिरुद्धाय ते नमः ॥ ३१॥

सदसद्भक्तिरूपाय नमस्ते पुरुषोत्तम ।

अधोक्षज नमस्तेऽस्तु सप्ततालहराय च ॥ ३२॥

खरदूषणसंहर्त्रे श्रीनृसिम्हाय ते नमः ।

अच्युताय नमस्तुभ्यं नमस्ते सेतुबन्धक ॥ ३३॥

जनार्दन नमस्तेऽस्तु नमो हनुमदाश्रय ।

उपेन्द्रचन्द्रवन्द्याय मारीचमथनाय च ॥ ३४॥

नमो बालिप्रहरण नमः सुग्रीवराज्यद ।

जामदग्न्यमहादर्पहराय हरये नमः ॥ ३५॥

नमो नमस्ते कृष्णाय नमस्ते भरताग्रज ।

नमस्ते पितृभक्ताय नमः शत्रुघ्नपूर्वज ॥ ३६॥

अयोध्याधिपते तुभ्यं नमः शत्रुघ्नसेवित ।

नमो नित्याय सत्याय बुद्ध्यादिज्ञानरूपिणे ॥ ३७॥

अद्वैतब्रह्मरूपाय ज्ञानगम्याय ते नमः ।

नमः पूर्णाय रम्याय माधवाय चिदात्मने ॥ ३८॥

अयोध्येशाय श्रेष्ठाय चिन्मात्राय परात्मने ।

नमोऽहल्योद्धारणाय नमस्ते चापभञ्जिने ॥ ३९॥

सीतारामाय सेव्याय स्तुत्याय परमेष्ठिने ।

नमस्ते बाणहस्ताय नमः कोदण्डधारिणे ॥ ४०॥

नमः कबन्धहन्त्रे च वालिहन्त्रे नमोऽस्तु ते ।

नमस्तेऽस्तु दशग्रीवप्राणसंहारकारिणे ॥ ४१॥

अष्टोत्तरशतं नाम्नां रमचन्द्रस्य पावनम् ।

एतत्प्रोक्तं मया श्रेष्ठ सर्वपातकनाशनम् ॥ ४२॥

प्रचरिष्यति तल्लोके प्राण्यदृष्टवशाद्द्विज ।

तस्य कीर्तनमात्रेण जना यास्यन्ति सद्गतिम् ॥ ४३॥

तावद्विजृम्भते पापं ब्रह्महत्यापुरःसरम्।

यावन्नामाष्टकशतं पुरुषो न हि कीर्तयेत् ॥ ४४॥

तावत्कलेर्महोत्साहो निःशङ्कं सम्प्रवर्तते ।

यावच्छ्रीरामचन्द्रस्य शतनाम्नां न कीर्तनम् ॥ ४६॥

तावत्स्वरूपं रामस्य दुर्बोधं प्राणिनां स्फुटम् ।

यावन्न निष्ठया रामनाममाहात्म्यमुत्तमम् ॥ ४७॥

कीर्तितं पठितं चित्ते धृतं संस्मारितं मुदा ।

अन्यतः शृणुयान्मर्त्यः सोऽपि मुच्येत पातकात् ॥ ४८॥

ब्रह्महत्यादिपापानां निष्कृतिं यदि वाञ्छति ।

रामस्तोत्रं मासमेकं पठित्वा मुच्यते नरः ॥ ४९॥

दुष्प्रतिग्रहदुर्भोज्यदुरालापादिसम्भवम् ।

पापं सकृत्कीर्तनेन रामस्तोत्रं विनाशयेत् ॥ ५०॥

श्रुतिस्मृतिपुराणेतिहासागमशतानि च ।

अर्हन्ति नाल्पां श्रीरामनामकीर्तिकलामपि ॥ ५१॥

अष्टोत्तरशतं नाम्नां सीतारामस्य पावनम् ।

अस्य सङ्कीर्तनादेव सर्वान् कामान् लभेन्नरः ॥ ५२॥

पुत्रार्थी लभते पुत्रान् धनार्थी धनमाप्नुयात् ।

स्त्रियं प्राप्नोति पत्न्यर्थी स्तोत्रपाठश्रवादिना ॥ ५३॥

कुम्भोदरेण मुनिना येन स्तोत्रेण राघवः ।

स्तुतः पूर्वं यज्ञवाटे तदेतत्त्वां मयोदितम् ॥ ५४॥

इति श्रीशतकोटिरामचरितान्तर्गते श्रीमदानन्दरामायणे वाल्मीकीये यात्राकाण्डे श्रीरामनामाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं नाम पञ्चमः सर्गः ॥

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