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त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Tripura Bhairavi Ashtottara Shatanama Stotram

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त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Tripura Bhairavi Ashtottara Shatanama Stotram

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त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Tripura Bhairavi Ashtottara Shatanama Stotram

॥ श्रीगणेशाय नमः ॥

॥ श्रीउमामहेश्वराभ्यां नमः ॥

॥ अथ भैरव्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रप्रारंभः ॥

श्रीदेव्युवाच ।

कैलासवासिन्भगवन्प्राणेश्वर कृपानिधे ।

भक्तवत्सल भैरव्या नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ १॥

न श्रुतं देवदेवेश वद मां दीनवत्सल ।

श्रीशिव उवाच ।

शृणु प्रिये महागोप्यं नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ २॥

भैरव्याः शुभदं सेव्यं सर्वसम्पत्प्रदायकम् ।

यस्यानुष्ठानमात्रेण किं न सिद्ध्यति भूतले ॥ ३॥

ॐ भैरवी भैरवाराध्या भूतिदा भूतभावना ।

कार्य्या ब्राह्मी कामधेनुः सर्वसम्पत्प्रदायिनी ॥ ४॥

त्रैलोक्यवन्दिता देवी महिषासुरमर्द्दिनी ।

मोहघ्नी मालतीमाला महापातकनाशिनी ॥ ५॥

क्रोधिनी क्रोधनिलया क्रोधरक्तेक्षणा कुहूः ।

त्रिपुरा त्रिपुराधारा त्रिनेत्रा भीमभैरवी ॥ ६॥

देवकी देवमाता च देवदुष्टविनाशिनी ।

दामोदरप्रिया दीर्घा दुर्गा दुर्गतिनाशिनी ॥ ७॥

लम्बोदरी लम्बकर्णा प्रलम्बितपयोधरा ।

प्रत्यङ्गिरा प्रतिपदा प्रणतक्लेशनाशिनी ॥ ८॥

प्रभावती गुणवती गणमाता गुहेश्वरी ।

क्षीराब्धितनया क्षेम्या जगत्त्राणविधायिनी ॥ ९॥

महामारी महामोहा महाक्रोधा महानदी ।

महापातकसंहर्त्री महामोहप्रदायिनी ॥ १०॥

विकराला महाकाला कालरूपा कलावती ।

कपालखट्वाङ्गधरा खड्गखर्प्परधारिणी ॥ ११॥

कुमारी कुङ्कुमप्रीता कुङ्कुमारुणरञ्जिता ।

कौमोदकी कुमुदिनी कीर्त्त्या कीर्त्तिप्रदायिनी ॥ १२॥

नवीना नीरदा नित्या नन्दिकेश्वरपालिनी ।

घर्घरा घर्घरारावा घोरा घोरस्वरूपिणी ॥ १३॥

कलिघ्नी कलिधर्मघ्नी कलिकौतुकनाशिनी ।

किशोरी केशवप्रीता क्लेशसङ्घनिवारिणी ॥ १४॥

महोत्तमा महामत्ता महाविद्या महीमयी ।

महायज्ञा महावाणी महामन्दरधारिणी ॥ १५॥

मोक्षदा मोहदा मोहा भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी ।

अट्टाट्टहासनिरता कङ्कणन्नूपुरधारिणी ॥ १६॥

दीर्घदंष्ट्रा दीर्घमुखी दीर्घघोणा च दीर्घिका ।

दनुजान्तकरी दुष्टा दुःखदारिद्र्यभञ्जिनी ॥ १७॥

दुराचारा च दोषघ्नी दमपत्नी दयापरा ।

मनोभवा मनुमयी मनुवंशप्रवर्द्धिनी ॥ १८॥

श्यामा श्यामतनुः शोभा सौम्या शम्भुविलासिनी ।

इति ते कथितं दिव्यं नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ १९॥

भैरव्या देवदेवेश्यास्तव प्रीत्यै सुरेश्वरि ।

अप्रकाश्यमिदं गोप्यं पठनीयं प्रयत्नतः ॥ २०॥

देवीं ध्यात्वा सुरां पीत्वा मकारपञ्चकैः प्रिये ।

पूजयेत्सततं भक्त्या पठेत्स्तोत्रमिदं शुभम् ॥ २१॥

षण्मासाभ्यंतरे सोऽपि गणनाथसमो भवेत् ।

किमत्र बहुनोक्तेन त्वदग्रे प्राणवल्लभे ॥ २२ ॥

सर्वं जानासि सर्वज्ञे पुनर्मां परिपृच्छसि ।

न देयं परशिष्येभ्यो निन्दकेभ्यो विशेषतः ॥ २३॥

॥ इति श्रीभैरव्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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