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कामकला काली स्तोत्र || Kamakala Kali Stotram || Kali Stotram

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कामकला काली स्तोत्र || Kamakala Kali Stotram

Kamakala Kali Stotram का जो नियमित रूप से प्रातः मध्याह्न, सायं तथा रात्रि में सदैव पाठ करता है, उसके घर में माँ काली का वास होता है । और उस साधक को जल, अग्नि, श्मशान, युद्धस्थल में किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता नही रहता हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Kamakala Kali Stotram By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

कामकला काली स्तोत्र || Kamakala Kali Stotram

॥ कामकलाकालीस्तोत्रम् ॥

श्री गणेशाय नमः ।

महाकाल उवाच ।

अथ वक्ष्ये महेशानि देव्याः स्तोत्रमनुत्तमम् ।

यस्य स्मरणमात्रेण विघ्ना यान्ति पराङ्मुखाः ॥ १॥

विजेतुं प्रतस्थे यदा कालकस्या-, सुरान् रावणो मुञ्जमालिप्रवर्हान् ।

तदा कामकालीं स तुष्टाव, वाग्भिर्जिगीषुर्मृधे बाहुवीर्य्येण सर्वान् ॥ २॥

महावर्त्तभीमासृगब्ध्युत्थवीची-, परिक्षालिता श्रान्तकन्थश्मशाने ।

चितिप्रज्वलद्वह्निकीलाजटाले, शिवाकारशावासने सन्निषण्णाम् ॥ ३॥

महाभैरवीयोगिनीडाकिनीभिः, करालाभिरापादलम्बत्कचाभिः ।

भ्रमन्तीभिरापीय मद्यामिषास्रान्यजस्रं, समं सञ्चरन्तीं हसन्तीम् ॥ ४॥

महाकल्पकालान्तकादम्बिनी-, त्विट्परिस्पर्द्धिदेहद्युतिं घोरनादाम् ।

स्फुरद्द्वादशादित्यकालाग्निरुद्र-, ज्वलद्विद्युदोघप्रभादुर्निरीक्ष्याम् ॥ ५॥

लसन्नीलपाषाणनिर्माणवेदि-, प्रभश्रोणिबिम्बां चलत्पीवरोरुम् ।

समुत्तुङ्गपीनायतोरोजकुम्भां, कटिग्रन्थितद्वीपिकृत्त्युत्तरीयाम् ॥ ६॥

स्रवद्रक्तवल्गन्नृमुण्डावनद्धा-, सृगाबद्धनक्षत्रमालैकहाराम् ।

मृतब्रह्मकुल्योपक्लृप्ताङ्गभूषां, महाट्टाट्टहासैर्जगत् त्रासयन्तीम् ॥ ७॥

निपीताननान्तामितोद्धृत्तरक्तो-, च्छलद्धारया स्नापितोरोजयुग्माम् ।

महादीर्घदंष्ट्रायुगन्यञ्चदञ्च-, ल्ललल्लेलिहानोग्रजिह्वाग्रभागाम् ॥ ८॥

चलत्पादपद्मद्वयालम्बिमुक्त-, प्रकम्पालिसुस्निग्धसम्भुग्नकेशाम् ।

पदन्याससम्भारभीताहिराजा-, ननोद्गच्छदात्मस्तुतिव्यस्तकर्णाम् ॥ ९॥

महाभीषणां घोरविंशार्द्धवक्त्रै-, स्तथासप्तविंशान्वितैर्लोचनैश्च ।

पुरोदक्षवामे द्विनेत्रोज्ज्वलाभ्यां, तथान्यानने त्रित्रिनेत्राभिरामाम् ॥ १०॥

लसद्वीपिहर्य्यक्षफेरुप्लवङ्ग-, क्रमेलर्क्षतार्क्षद्विपग्राहवाहैः ।

मुखैरीदृशाकारितैर्भ्राजमानां, महापिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ॥ ११॥

भुजैः सप्तविंशाङ्कितैर्वामभागे, युतां दक्षिणे चापि तावद्भिरेव ।

क्रमाद्रत्नमालां कपालं च शुष्कं, ततश्चर्मपाशं सुदीर्घं दधानाम् ॥ १२॥

ततः शक्तिखट्वाङ्गमुण्डं भुशुण्डीं, धनुश्चक्रघण्टाशिशुप्रेतशैलान् ।

ततो नारकङ्कालबभ्रूरगोन्माद-, वंशीं तथा मुद्गरं वह्निकुण्डम् ॥ १३॥

अधो डम्मरुं पारिघं भिन्दिपालं, तथा मौशलं पट्टिशं प्राशमेवम् ।

शतघ्नीं शिवापोतकं चाथ दक्षे, महारत्नमालां तथा कर्त्तुखड्गौ ॥ १४॥

चलत्तर्ज्जनीमङ्कुशं दण्डमुग्रं, लसद्रत्नकुम्भं त्रिशूलं तथैव ।

शरान् पाशुपत्यांस्तथा पञ्च कुन्तं, पुनः पारिजातं छुरीं तोमरं च ॥ १५॥

प्रसूनस्रजं डिण्डिमं गृध्रराजं, ततः कोरकं मांसखण्डं श्रुवं च ।

फलं बीजपूराह्वयं चैव सूचीं, तथा पर्शुमेवं गदां यष्टिमुग्राम् ॥ १६॥

ततो वज्रमुष्टिं कुणप्पं सुघोरं, तथा लालनं धारयन्तीं भुजैस्तैः ।

जवापुष्परोचिष्फणीन्द्रोपक्लृप्त-, क्वणन्नूपुरद्वन्द्वसक्ताङ्घ्रिपद्माम् ॥ १७॥

महापीतकुम्भीनसावद्धनद्ध, स्फुरत्सर्वहस्तोज्ज्वलत्कङ्कणां च ।

महापाटलद्योतिदर्वीकरेन्द्रा-, वसक्ताङ्गदव्यूहसंशोभमानाम् ॥ १८॥

महाधूसरत्त्विड्भुजङ्गेन्द्रक्लृप्त-, स्फुरच्चारुकाटेयसूत्राभिरामाम् ।

चलत्पाण्डुराहीन्द्रयज्ञोपवीत-, त्विडुद्भासिवक्षःस्थलोद्यत्कपाटाम् ॥ १९॥

पिषङ्गोरगेन्द्रावनद्धावशोभा-, महामोहबीजाङ्गसंशोभिदेहाम् ।

महाचित्रिताशीविषेन्द्रोपक्लृप्त-, स्फुरच्चारुताटङ्कविद्योतिकर्णाम् ॥ २०॥

वलक्षाहिराजावनद्धोर्ध्वभासि-, स्फुरत्पिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ।

महाशोणभोगीन्द्रनिस्यूतमूण्डो-, ल्लसत्किङ्कणीजालसंशोभिमध्याम् ॥ २१॥

सदा संस्मरामीदृशों कामकालीं, जयेयं सुराणां हिरण्योद्भवानाम् ।

स्मरेयुर्हि येऽन्येऽपि ते वै जयेयु-, र्विपक्षान्मृधे नात्र सन्देहलेशः ॥ २२॥

पठिष्यन्ति ये मत्कृतं स्तोत्रराजं, मुदा पूजयित्वा सदा कामकालीम् ।

न शोको न पापं न वा दुःखदैन्यं, न मृत्युर्न रोगो न भीतिर्न चापत् ॥ २३॥

धनं दीर्घमायुः सुखं बुद्धिरोजो, यशः शर्मभोगाः स्त्रियः सूनवश्च ।

श्रियो मङ्गलं बुद्धिरुत्साह आज्ञा, लयः शर्म सर्व विद्या भवेन्मुक्तिरन्ते ॥ २४॥

॥ इतिश्रीमहावामकेश्वरतन्त्रे कालकेयहिरण्यपुरविजये रावणकृतं कामकलाकालीभुजङ्गप्रयातस्तोत्रराजं सम्पूर्णम् ॥

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