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ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम् || Kakaradi Kali Shatanama Stotram || Kakaradi Kali Shatanama Stotra

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ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम् || Kakaradi Kali Shatanama Stotram

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ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम् || Kakaradi Kali Shatanama Stotram

श्रीदेव्युवाच-

नमस्ते पार्वतीनाथ विश्वनाथ दयामय ।

ज्ञानात् परतरं नास्ति श्रुतं विश्वेश्वर प्रभो ॥ १॥

दीनवन्धो दयासिन्धो विश्वेश्वर जगत्पते ।

इदानीं श्रोतुमिच्छामि गोप्यं परमकारणम् ।

रहस्यं कालिकायश्च तारायाश्च सुरोत्तम ॥ २॥

श्रीशिव उवाच-

रहस्यं किं वदिष्यामि पञ्चवक्त्रैर्महेश्वरी ।

जिह्वाकोटिसहस्रैस्तु वक्त्रकोटिशतैरपि ॥ ३॥

वक्तुं न शक्यते तस्य माहात्म्यं वै कथञ्चन ।

तस्या रहस्यं गोप्यञ्च किं न जानासि शंकरी ॥ ४॥

स्वस्यैव चरितं वक्तुं समर्था स्वयमेव हि ।

अन्यथा नैव देवेशि ज्ञायते तत् कथञ्चन ॥ ५॥

कालिकायाः शतं नाम नाना तन्त्रे त्वया श्रुतम् ।

रहस्यं गोपनीयञ्च तत्रेऽस्मिन् जगदम्बिके ॥ ६॥

करालवदना काली कामिनी कमला कला ।

क्रियावती कोटराक्षी कामाक्ष्या कामसुन्दरी ॥ ७॥

कपाला च कराला च काली कात्यायनी कुहुः ।

कङ्काला कालदमना करुणा कमलार्च्चिता ॥ ८॥

कादम्बरी कालहरा कौतुकी कारणप्रिया ।

कृष्णा कृष्णप्रिया कृष्णपूजिता कृष्णवल्लभा ॥ ९॥

कृष्णापराजिता कृष्णप्रिया च कृष्णरूपिनी ।

कालिका कालरात्रीश्च कुलजा कुलपण्डिता ॥ १०॥

कुलधर्मप्रिया कामा काम्यकर्मविभूषिता ।

कुलप्रिया कुलरता कुलीनपरिपूजिता ॥ ११॥

कुलज्ञा कमलापूज्या कैलासनगभूषिता ।

कूटजा केशिनी काम्या कामदा कामपण्डिता ॥ १२॥

करालास्या च कन्दर्पकामिनी रूपशोभिता ।

कोलम्बका कोलरता केशिनी केशभूषिता ॥ १३॥

केशवस्यप्रिया काशा काश्मीरा केशवार्च्चिता ।

कामेश्वरी कामरुपा कामदानविभूषिता ॥ १४॥

कालहन्त्री कूर्ममांसप्रिया कूर्मादिपूजिता ।

कोलिनी करकाकारा करकर्मनिषेविणी ॥ १५॥

कटकेश्वरमध्यस्था कटकी कटकार्च्चिता ।

कटप्रिया कटरता कटकर्मनिषेविणी ॥ १६॥

कुमारीपूजनरता कुमारीगणसेविता ।

कुलाचारप्रिया कौलप्रिया कौलनिषेविणी ॥ १७॥

कुलीना कुलधर्मज्ञा कुलभीतिविमर्द्दिनी ।

कालधर्मप्रिया काम्य-नित्या कामस्वरूपिणी ॥ १८॥

कामरूपा कामहरा काममन्दिरपूजिता ।

कामागारस्वरूपा च कालाख्या कालभूषिता ॥ १९॥

क्रियाभक्तिरता काम्यानाञ्चैव कामदायिनी ।

कोलपुष्पम्बरा कोला निकोला कालहान्तरा ॥ २०॥

कौषिकी केतकी कुन्ती कुन्तलादिविभूषिता ।

इत्येवं शृणु चार्वङ्गि रहस्यं सर्वमङ्गलम् ॥ २१॥

फलश्रुति-

यः पठेत् परया भक्त्या स शिवो नात्र संशयः ।

शतनामप्रसादेन किं न सिद्धति भूतले ॥ २२॥

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च वासवाद्या दिवौकसः ।

रहस्यपठनाद्देवि सर्वे च विगतज्वराः ॥ २३॥

त्रिषु लोकेशु विश्वेशि सत्यं गोप्यमतः परम् ।

नास्ति नास्ति महामाये तन्त्रमध्ये कथञ्चन ॥ २४॥

सत्यं वचि महेशानि नातःपरतरं प्रिये ।

न गोलोके न वैकुण्ठे न च कैलासमन्दिरे ॥ २५॥

रात्रिवापि दिवाभागे यदि देवि सुरेश्वरी ।

प्रजपेद् भक्तिभावेन रहस्यस्तवमुत्तमम् ॥ २६॥

शतनाम प्रसादेन मन्त्रसिद्धिः प्रजायते ।

कुजवारे चतुर्द्दश्यां निशाभागे जपेत्तु यः ॥ २७॥

स कृती सर्वशास्त्रज्ञः स कुलीनः सदा शुचिः ।

स कुलज्ञः स कालज्ञः स धर्मज्ञो महीतले ॥ २८॥

रहस्य पठनात् कोटि-पुरश्चरणजं फलम् ।

प्राप्नोति देवदेवेशि सत्यं परमसुन्दरी ॥ २९॥

स्तवपाठाद् वरारोहे किं न सिद्धति भूतले ।

अणिमाद्यष्टसिद्धिश्च भवेत्येव न संशयः ॥ ३०॥

रात्रौ बिल्वतलेऽश्वथ्थमूलेऽपराजितातले ।

प्रपठेत् कालिका-स्तोत्रं यथाशक्त्या महेश्वरी ॥ ३१॥

शतवारप्रपठनान्मन्त्रसिद्धिर्भवेद्ध्रूवम् ।

नानातन्त्रं श्रुतं देवि मम वक्त्रात् सुरेश्वरी ॥ ३२॥

मुण्डमालामहामन्त्रं महामन्त्रस्य साधनम् ।

भक्त्या भगवतीं दुर्गां दुःखदारिद्र्यनाशिनीम् ॥ ३३॥

संस्मरेद् यो जपेद्ध्यायेत् स मुक्तो नात्र संशय ।

जीवन्मुक्तः स विज्ञेयस्तन्त्रभक्तिपरायणः ॥ ३४॥

स साधको महाज्ञानी यश्च दुर्गापदानुगः ।

न च भक्तिर्न वाहभक्तिर्न मुक्तिनगनन्दिनि ॥ ३५॥

विना दुर्गां जगद्धात्री निष्फलं जीवनं भभेत् ।

शक्तिमार्गरतो भूत्वा योहन्यमार्गे प्रधावति ॥ ३६॥

न च शाक्तास्तस्य वक्त्रं परिपश्यन्ति शंकरी ।

विना तन्त्राद् विना मन्त्राद् विना यन्त्रान्महेश्वरी ॥ ३७॥

न च भुक्तिश्च मुक्तिश्च जायते वरवर्णिनी ।

यथा गुरुर्महेशानि यथा च परमो गुरुः ॥ ३८॥

तन्त्रावक्ता गुरुः साक्षाद् यथा च ज्ञानदः शिवः ।

तन्त्रञ्च तन्त्रवक्तारं निन्दन्ति तान्त्रीकीं क्रियाम् ॥ ३९॥

ये जना भैरवास्तेषां मांसास्थिचर्वणोद्यताः ।

अतएव च तन्त्रज्ञं स निन्दन्ति कदाचन ।

न हस्तन्ति न हिंसन्ति न वदन्त्यन्यथा बुधा ॥ ४०॥

॥ इति मुण्डमालातन्त्रेऽष्टमपटले देवीश्वर संवादे कालीशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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