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भुवनेश्वरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram

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भुवनेश्वरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram

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भुवनेश्वरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Bhuvaneshwari Ashtottara Shatanama Stotram

कैलासशिखरे रम्ये नानारत्नोपशोभिते ।

नरनारीहितार्थाय शिवं पप्रच्छ पार्वती ॥ १॥

देव्युवाच –

भुवनेशीमहाविद्यानाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।

कथयस्व महादेव यद्यहं तव वल्लभा ॥ २॥

ईश्वर उवाच –

शृणु देवि महाभागे स्तवराजमिदं शुभम् ।

सहस्रनाम्नामधिकं सिद्धिदं मोक्षहेतुकम् ॥ ३॥

शुचिभिः प्रातरुत्थाय पठितव्यं समाहितैः ।

त्रिकालं श्रद्धया युक्तैः सर्वकामफलप्रदम् ॥ ४॥

अस्य श्रीभुवनेश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य शक्तिरृषिः

गायत्री छन्दःभुवनेश्वरी देवता चतुर्वर्गसाधने जपे विनियोगः ।

ॐ महामाया महाविद्या महाभोगा महोत्कटा ।

माहेश्वरी कुमारी च ब्रह्माणी ब्रह्मरूपिणी ॥ ५॥

वागीश्वरी योगरूपा योगिनीकोटिसेविता ।

जया च विजया चैव कौमारी सर्वमङ्गला ॥ ६॥

हिङ्गुला च विलासी च ज्वालिनी ज्वालरूपिणी ।

ईश्वरी क्रूरसंहारी कुलमार्गप्रदायिनी ॥ ७॥

वैष्णवी सुभगाकारा सुकुल्या कुलपूजिता ।

वामाङ्गा वामचारा च वामदेवप्रिया तथा ॥ ८॥

डाकिनी योगिनीरूपा भूतेशी भूतनायिका ।

पद्मावती पद्मनेत्रा प्रबुद्धा च सरस्वती ॥ ९॥

भूचरी खेचरी माया मातङ्गी भुवनेश्वरी ।

कान्ता पतिव्रता साक्षी सुचक्षुः कुण्डवासिनी ॥ १०॥

उमा कुमारी लोकेशी सुकेशी पद्मरागिणी ।

इन्द्राणी ब्रह्म चाण्डाली चण्डिका वायुवल्लभा ॥ ११॥

सर्वधातुमयीमूर्तिर्जलरूपा जलोदरी ।

आकाशी रणगा चैव नृकपालविभूषणा ॥ १२॥

नर्मदा मोक्षदा चैव धर्मकामार्थदायिनी ।

गायत्री चाथ सावित्री त्रिसन्ध्या तीर्थगामिनी ॥ १३॥

अष्टमी नवमी चैव दशम्येकादशी तथा ।

पौर्णमासी कुहूरूपा तिथिमूर्तिस्वरूपिणी ॥ १४॥

सुरारिनाशकारी च उग्ररूपा च वत्सला ।

अनला अर्धमात्रा च अरुणा पीतलोचना ॥ १५॥

लज्जा सरस्वती विद्या भवानी पापनाशिनी ।

नागपाशधरा मूर्तिरगाधा धृतकुण्डला ॥ १६॥

क्षत्ररूपा क्षयकरी तेजस्विनी शुचिस्मिता ।

अव्यक्ता व्यक्तलोका च शम्भुरूपा मनस्विनी ॥ १७॥

मातङ्गी मत्तमातङ्गी महादेवप्रिया सदा ।

दैत्यहा चैव वाराही सर्वशास्त्रमयी शुभा ॥ १८॥

य इदं पठते भक्त्या शृणुयाद्वा समाहितः ।

अपुत्रो लभते पुत्रं निर्धनो धनवान् भवेत् ॥ १९॥

मूर्खोऽपि लभते शास्त्रं चोरोऽपि लभते गतिम् ।

वेदानां पाठको विप्रः क्षत्रियो विजयी भवेत् ॥ २०॥

वैश्यस्तु धनवान्भूयाच्छूद्रस्तु सुखमेधते ।

अष्टम्याञ्च चतुर्दश्यां नवम्यां चैकचेतसः ॥ २१॥

ये पठन्ति सदा भक्त्या न ते वै दुःखभागिनः ।

एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वा चतुर्थकम् ॥ २२॥

ये पठन्ति सदा भक्त्या स्वर्गलोके च पूजिताः ।

रुद्रं दृष्ट्वा यथा देवाः पन्नगा गरुडं यथा ॥

शत्रवः प्रपलायन्ते तस्य वक्त्रविलोकनात् ॥ २३॥

इति श्रीरुद्रयामले देवीशङ्करसंवादे भुवनेश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥

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